जिससे आप हाथ न धोएं, उस पानी से यहां प्यास बुझती है!
Posted on May 03, 2012 at 11:00am IST
सतारा। पानी का संकट झेल रहे
महाराष्ट्र के इलाकों में ही एक इलाका है सतारा। इस जिले की दो तहसीलें
माण और खटाउ में हालात सबसे ज्यादा गंभीर हैं। इन तहसीलों के लोगों की एक
ही मांग है कि जैसे भी हो उन्हें पानी चाहिए। 17 साल पहले इस इलाके में
पानी संकट दूर करने के लिए दो प्रोजेक्ट शुरू किए गए, लेकिन आज तक लोगों को
पानी की एक बूंद तक नहीं मिली।
सतारा
जिले की तहसील माण और खटाउ में अगर आप पानी देख लें तो शायद उससे हाथ भी न
धोना चाहें। लेकिन हाल कुछ ऐसा है कि इस गंदे पानी को यहां लोग पीते हैं।
इलाके के गांव 1972, 1986 और 2003 के अकाल और सूखा झेल चुके हैं लेकिन इस
साल का सूखा सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है। पानी लाने की योजनाएं फेल
साबित हुई हैं।
यहां
मंत्री-संत्री सब आते हैं, फिर भी हाल जस का तस बना हुआ है। सरकार ने यहां
कठापुर और उर्मोडी में दो बड़े प्रोजेक्ट शुरू किए। उर्मोडी बांध के जरिए
माण और खटाउ में कनाल से पानी लाना था तो कठापुर योजना में कृष्णा नदी का
पानी पंप करके माणगंगा और इर्ला नदी में छोड़ा जाना था।
दोनों
प्रोजेक्ट्स को तीन साल में पूरा होना था, पर 17 साल हो चुके हैं, उर्मोडी और कठापुर प्रोजेक्ट ..अधुरे में अटके है / , दरअसल सातारा के सूखाग्रस्त तहसील में पानी के
अलावा महत्वकांक्षा की भी कमी है। सरकार ने जो प्रोजेक्ट लाए वो अब भी
आधे-अधूरे हैं। अधूरा पड़ा उर्मोडी प्रोजेक्ट का यह काम इसका जीता-जागता
सबूत है।
सरकार
के मुताबिक उसके पास प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए पैसा नहीं जबकि केंद्र
सरकार की एआईबीपी पानी योजना के तहत इन पर करोड़ों रुपए खर्चे जा चुके हैं।
सवाल ये है कि ये करोड़ों रुपए कहां गए। इतना पैसा खर्च होने के बावजूद
गांव प्यासे क्यों हैं।
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